Description
आध्यात्मिक संयोजन: गुरु-शिष्य प्रेरणास्पद सम्बन्ध का अर्थबोध
“भक्ति-योग” के मार्ग पर भी, जो कि योग प्रणाली के सर्वोच्च स्थान पर है, किसी मार्गदर्शक को, जिसको सामान्यतः वैदिक परम्परा में “गुरु” कहा जाता है, स्वीकार करना महत्वपूर्ण समझा गया है । अंग्रेजी भाषा में गुरु का आधुनिक सन्दर्भ “टीचर” शब्द से दिया जाता है, जो कि संस्कृत शब्द “गुरु” के अर्थ व महत्व को पूर्णरूपेण प्रकट नहीं कर पाता है। इसी प्रकार “स्टूडेंट” शब्द भी “शिष्य” शब्द के पूर्ण समरूप नहीं है । इसलिए गुरु-शिष्य की भूमिका एवं इन दोनों का आपसी सम्बन्ध गहन अध्ययन का विषय बन जाता है । अन्य किसी सम्बन्ध के समान गुरु-शिष्य का सम्बन्ध भी उत्कृष्ट विश्वास के आधार पर स्थित है और यह विकसित वचनबद्धता, निष्ठा और आपसी सूझबूझ के साथ बढ़ता जाता है ।
इस पुस्तक में विभिन्न विषय-वस्तु को लिया गया है जैसे कि समर्पण, इसका महत्व, इसकी प्रक्रिया और इसका लक्ष्य; जीवित गुरु के प्रति शरणागत होने की आवश्यकता, भगवान्-गुरु-शिष्य की तिकड़ी, गुरु-शिष्य के सम्बन्ध की गंभीरता और व्यक्तिगत कर्तव्यों के प्रति सचेतता की आवश्यकता । इससे आगे यह पुस्तक, डाँट-फटकार एवं पुनःस्थापना का विज्ञान, गुरु द्वारा शिष्य की परीक्षा लेना और साथ ही शिष्य द्वारा प्रेम एवं सहयोग की भावना से अपना कार्य करना आदि पर भी अपना प्रकाश डालती है । पाठक गण अपने गुरु के प्रति सच्ची भक्ति का अर्थ इस पुस्तक में प्राप्त करेंगे और उसके साथ-साथ गलत अवधारणाओं और समझ को भी यहाँ पर उजागर किया गया है । आन्तरिक सम्बन्ध के विज्ञान को भी यहाँ विस्तृत रूप से प्रतिपादित किया गया है ।
प्रस्तावना:
“मैं भक्ति के मार्ग पर अग्रसर सभी गंभीर साधकों से यह निवेदन करता हूँ कि वे इस पुस्तक की शिक्षाओं को ग्रहण कर इनको आत्मसात कर लें ।”
– परम पूज्य गोपाल कृष्ण गोस्वामी महारज (गवर्निंग बॉडी कमिश्नर, इस्कॉन)
“भक्ति धीर दामोदर स्वामी महाराज ने बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को विभिन्न दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है । उन्होंने इस पुस्तक के प्रारम्भिक अध्याय में समर्पण रूपी प्राथमिक चरण से प्रारंभ कर आगे बढ़ते हुए इसके अंतिम अध्याय में शिष्यत्व का वर्णन किया है । इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय का आरम्भ शास्त्रों से एक कहानी रूपी उद्धरण से होता है, जिसमें से लेखक ने अनेक प्रासंगिक एवं उपयुक्त तथ्यों को समकालीन या आधुनिक प्रकार से प्रस्तुत किया है या यूँ कहे तो अत्यधिक मनोवैज्ञानिक एवं आत्म विश्लेषणात्मक तथ्यों को प्रदान किया है । कुल मिलाकर यह पुस्तक एक अमूल्य योगदान है, और अनेक लोगों को इससे गुरु-शिष्य संबंध को निभाने हेतु प्रेरणा, प्रोत्साहन तथा उपयुक्त दृष्टिकोण प्राप्त होगा ।”
– परम पूज्य कदम्ब कानन स्वामी महाराज
“इस विस्तृत पुस्तक के पन्नों से गुज़रते हुए उत्साह एवं स्फूर्ति दोनों की प्राप्ति होती है क्योंकि या पुस्तक गुरु-शिष्य सम्बन्ध के समस्त तथ्यों को समाहित करती है । इसको एक बार पढ़ना और फिर पुनः-पुनः पढ़ना किसी को भी अच्छा लगेगा, क्योंकि भक्ति के अभ्यास के सार का वर्णन इसमें अत्यंत सुन्दर रूप से किया गया है ।”
– श्रीमान् श्रीवास दास (ग्लोबल ड्यूटी ऑफिसर, पश्चिम अफ्रीका, इस्कॉन)
“वैदिक संस्कृति के अनुसार “गुरु” शब्द का अर्थ है, ‘भारी’, अर्थात् ज्ञान से भारी । दूसरे शब्दों में कहें तो जिसको अपने-अपने निजी क्षेत्र में किसी विशेष विषय-वस्तु का सम्पूर्ण ज्ञान हो उसे ‘गुरु; कहा जाता है । इस पुस्तक में लेखक ने अत्यंत विनम्रता पूर्वक, स्नेह पूर्वक और उत्कृष्टता से गुरु-शिष्य सम्बन्ध हेतु शाश्वत तत्त्वों को हम लोगों के लिये प्रस्तुत किया है । वे सभी लोग जो कि अध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहते हैं अथवा अन्वेषक हैं या फिर एक अनुभवी साधक, यह पुस्तक उन सभी के लिए पूर्ण मार्गदर्शन का काम करेगी और अत्यंत पवित्र गुरु-शिष्य सम्बन्ध के विज्ञान से जुड़ने में सहायक बनेगी ।”
– श्रीमती व्रज लीला देवी दासी (डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट फॉर अप्लाइड स्प्रिचुअल टेक्नोलॉजी, अमेरिका)
Komal –
great book